छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्थित मां महामाया का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए हमेशा ही आकर्षण का केंद्र बना रहा है। यहां मौजूद माता चमत्कारी हैं जो अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं। इस मंदिर के बारे में सबसे अनोखी और चमत्कारी बात सूर्यदेव से जुड़ी है। माता समलेश्वरी देवी की मूर्ति के चरण खुद भगवान सूर्य छूते हैं। चैत्र नवरात्रि के सूर्य की पहली किरण चमत्कारी रूप से माता के चरणों पर पड़ती है और इसके बाद पूरे विश्व को इसकी ऊर्जा प्राप्त होती है।

मंदिर की बनावट ऐसी है जिसे देखकर वैज्ञानिक भी हैरान हैं। आज तक कोई इस बात का पता नहीं लगा पाया है कि सूर्य की किरणें सबसे पहले माता के चरणों तक कैसे पहुंचती हैं। इस चमत्कारी घटना को देखने के लिए दूर-दूर से लोग चैत्र नवरात्रि के दिन मंदिर पहुंचते हैं।

करीब 8वीं शताब्दी में बना ये मंदिर 1300 साल पुराना है। इस मंदिर का निर्माण राजा मोरध्वज ने खास तांत्रिक विधि से करवाया था। ये इनकी कुलदेवी भी हैं। ऐसी मान्यता है कि माता के चरणों में शीश झुकाकर जो भी इनसे कुछ मांगता है वो उसे सदैव मिलता है।

मां ने राजा को दिए थे दर्शन

इस मंदिर के पीछे एक कहानी छिपी है। एक बार राजा मोरध्वज अपनी सेना के साथ खारुन नदी के तट पर बने महादेव घाट पर रात्रि विश्राम के लिए रुके। सुबह रानी नदी पर स्नान के लिए पहुंची लेकिन वहां उन्हें कई सारे सांप दिखे। तत्काल राजा को इस बात की सूचना दी गई जिसके बाद राजा खुद तट पर पहुंचे और देखा कि वहां माता खुद प्रकट हुई हैं। मां ने राजा से कहा कि मैं यहीं रहना चाहती हूं मेरे रहने का इंतजाम किया जाए।

मां ने राजा से ये भी कहा कि यदि एक बार तुमने मुझे उठाकर कहीं रख दिया तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगी और फिर वहां से कभी कोई नहीं उठा पाएगा। राजा ने पुरानी बस्ती में एक निर्माणाधीन मंदिर के गर्भगृह में माता की मूर्ति को रख दिया लेकिन जैसे ही मंदिर में उनकी मूर्ति के लिए तय किए गए स्थान पर ले जाने के लिए मूर्ति को उठाया गया वो किसी से हिली तक नहीं। उस दिन से लेकर आज तक वो प्रतिमा वहीं स्थापित है। इस मूर्ति के चारों तरफ बनी दो खिड़कियों में से केवल एक से ही माता के दर्शन होते हैं।